सर एडमंड पर्सिवल हिलेरी का नाम सुनते ही माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई पर विजय पाने वाले पहले व्यक्ति की छवि मन में उभरती है। लेकिन उनकी असली महानता उनकी विनम्रता और सेवा के अद्वितीय गुणों में छिपी हुई थी। 29 मई 1953 को, सर हिलेरी और शेरपा टेनजिंग नोर्गे ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर इतिहास रच दिया। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और सहयोग का प्रतीक था।
विनम्रता: असली महानता का प्रतीक
सर एडमंड हिलेरी ने अपनी सफलता को कभी अपने जीवन का सबसे अहम हिस्सा नहीं माना। उन्होंने इसे मानव आत्मा की विजय कहा, न कि अपनी व्यक्तिगत उपलब्धि। एवरेस्ट फतह करने के बाद जब पूरी दुनिया ने उन्हें नायक माना, तब भी उन्होंने खुद को एक साधारण मधुमक्खी पालक के रूप में देखा।
जब उनसे पूछा गया कि क्या माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचना उनके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि थी, तो उनका जवाब था,
"नहीं, मैं तो बस पहाड़ पर कदमों के निशान छोड़कर आया था। मेरे जीवन की सबसे बड़ी संतुष्टि तो नेपाल के गरीब लोगों के लिए स्कूल और मेडिकल क्लिनिक बनाना है।"
सेवा भावना: हिमालयन ट्रस्ट का योगदान
एवरेस्ट पर विजय के बाद, हिलेरी ने अपनी प्रसिद्धि का उपयोग जरूरतमंदों की भलाई के लिए किया। उन्होंने 1960 में हिमालयन ट्रस्ट की स्थापना की और नेपाल के दूरदराज के क्षेत्रों में 63 से अधिक स्कूल, दो अस्पताल, कई मेडिकल क्लिनिक, पुल और हवाई अड्डे बनवाए। उनका यह योगदान हजारों नेपाली लोगों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया।
उनके जीवन में एक बड़ी त्रासदी तब आई जब उनकी पत्नी और बेटी एक हवाई दुर्घटना में मारी गईं। इस दुखद घटना के बावजूद, उन्होंने अपनी सेवा की भावना को और भी अधिक मजबूत कर लिया और नेपालियों की सहायता के अपने प्रयासों को बढ़ा दिया।
प्रेरणा का स्रोत
सर एडमंड हिलेरी का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची महानता केवल ऊंचाइयों को छूने में नहीं, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए काम करने में है। उनकी विनम्रता और सेवा भावना हमें यह प्रेरणा देती है कि हम भी अपने जीवन में दूसरों की मदद के लिए प्रयास करें।
सर हिलेरी की कहानी यह साबित करती है कि सफलता की असली मापदंड यह नहीं है कि आपने क्या हासिल किया, बल्कि यह है कि आपने दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए क्या किया। उनकी विनम्रता और सेवा की भावना एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाती है कि इंसानियत की असली ऊंचाई दूसरों के लिए जीने में है।
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