प्रस्तावना
भारतीय समाज में सामाजिक समानता, शिक्षा और नारी उत्थान के क्षेत्र में ज्योतिबा फुले का नाम अमर है। वे एक महान समाज सुधारक, विचारक, लेखक और दलित-शोषित वर्ग के मसीहा थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज में फैली जातिगत असमानता, अशिक्षा और स्त्री-दलित उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष में समर्पित कर दिया।
जीवन परिचय
ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्र के पुणे जिले के कटगुन गाँव में एक माली परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। उनकी माता का नाम चिमणाबाई और पिता का नाम गोविंदराव फुले था। बचपन में ही माँ का देहांत हो जाने के कारण उनका पालन-पोषण एक बुआ ने किया।
ज्योतिबा ने प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में प्राप्त की, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी। बाद में एक मिशनरी स्कूल में उन्होंने अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त की। 1840 में उनका विवाह सावित्रीबाई फुले से हुआ, जो स्वयं एक महान शिक्षिका और समाज सुधारक बनीं।
समाज सुधार के क्षेत्र में योगदान
1. शिक्षा का प्रसार
ज्योतिबा फुले का मानना था कि शिक्षा ही वह हथियार है जिसके द्वारा समाज में फैली अज्ञानता और असमानता को दूर किया जा सकता है। 1848 में उन्होंने पुणे में पहला बालिका विद्यालय खोला, जहाँ निम्न जाति और लड़कियों को निःशुल्क शिक्षा दी जाती थी। उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले इस स्कूल की पहली शिक्षिका बनीं।
2. स्त्री शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह
उन्होंने महिलाओं की दयनीय स्थिति को सुधारने के लिए अथक प्रयास किए। उन्होंने विधवा पुनर्वाव को बढ़ावा दिया और "स्त्री-पुरुष तुलना" नामक पुस्तक लिखकर नारी समानता का समर्थन किया।
3. सत्यशोधक समाज की स्थापना
1873 में उन्होंने "सत्यशोधक समाज" की स्थापना की, जिसका उद्देश्य ब्राह्मणवादी वर्चस्व और जाति व्यवस्था को चुनौती देना था। इस संगठन ने निम्न जातियों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए आवाज उठाई।
4. किसानों और दलितों के अधिकार
ज्योतिबा फुले ने किसानों और मजदूरों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने "गुलामगिरी" नामक पुस्तक लिखकर ब्राह्मणवादी शोषण का विरोध किया।
प्रमुख रचनाएँ
ज्योतिबा फुले ने समाज सुधार के लिए कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
गुलामगिरी (1873) – जाति व्यवस्था की आलोचना
तृतीय रत्न (1855) – शूद्रों और अतिशूद्रों की स्थिति पर
स्त्री-पुरुष तुलना (1882) – लैंगिक समानता पर
किसान का कोड़ा – किसानों के शोषण पर
अछूतों की कैफियत – अस्पृश्यता के विरुद्ध
प्रसिद्ध उद्धरण
"शिक्षा ही वह चाबी है जो समाज के बंद दरवाजे खोल सकती है।"
"जब तक शूद्र और अतिशूद्र शिक्षित नहीं होंगे, तब तक समाज में परिवर्तन नहीं आएगा।"
"सत्य और न्याय के बिना समाज का विकास असंभव है।"
कविता एवं भाषण
ज्योतिबा फुले ने समाज को जागृत करने के लिए कविताएँ भी लिखीं। उनकी एक प्रसिद्ध पंक्ति है:
"उठो, जागो, शिक्षा पाओ,
अंधविश्वासों को दूर भगाओ।
जाति-भेद मिटाकर, एक हो जाओ,
सच्ची मानवता का परचम लहराओ।"
उनके भाषणों में सामाजिक एकता, शिक्षा और न्याय का संदेश होता था।
निधन
ज्योतिबा फुले का 28 नवंबर, 1890 को निधन हो गया, लेकिन उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
उपसंहार
ज्योतिबा फुले ने भारतीय समाज को नई दिशा दी। उन्होंने शिक्षा, स्त्री उत्थान और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा मानव वही है जो समाज के पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए काम करे। आज भी उनके विचार हमें प्रेरणा देते हैं।
"ज्योतिबा फुले अमर रहें!"