पालि और प्राकृत भाषाओं का भारत में विस्तृत इतिहास

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पालि भाषा:

पालि भाषा बौद्ध धर्म से गहराई से जुड़ी हुई है। इसे बौद्ध ग्रंथों की भाषा माना जाता है, विशेषकर त्रिपिटक (विनय पिटक, सुत्त पिटक, और अभिधम्म पिटक)।

  1. उत्पत्ति:
    • पालि की उत्पत्ति 6वीं से 4वीं सदी ईसा पूर्व के बीच हुई मानी जाती है।
    • इसे प्राचीन भारत के जन-सामान्य द्वारा बोली जाने वाली भाषा का परिष्कृत रूप माना जाता है।
    • यह एक मध्यकालीन इंडो-आर्यन भाषा है, जिसमें संस्कृत की जटिलता नहीं थी।
  2. महत्व:
    • भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश पालि जैसी सरल भाषा में दिए, ताकि आम जन इसे आसानी से समझ सकें।
    • पालि साहित्य श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड और अन्य बौद्ध देशों में बौद्ध धर्म के प्रसार का माध्यम बना।
  3. भाषाई संरचना:
    • पालि में सरल व्याकरण और शब्द संरचना है।
    • यह संस्कृत की अपेक्षा बोलचाल में अधिक प्रयोग की जाने वाली भाषा थी।

प्राकृत भाषा:

प्राकृत शब्द का अर्थ है "प्राकृतिक" या "आम जनता की भाषा"। यह प्राचीन भारत की विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं का समूह है।

  1. उत्पत्ति:
    • प्राकृत भाषाओं का प्रयोग वैदिक काल के बाद हुआ, और ये भाषाएं 500 ईसा पूर्व से 1000 ईस्वी तक खूब फली-फूलीं।
    • इन्हें संस्कृत की "विकसित" भाषा के विपरीत "सामान्य" भाषा माना गया।
    • जैन धर्म और बौद्ध धर्म के ग्रंथों में प्राकृत का विशेष महत्व है।
  2. प्रकार:
    • प्राकृत भाषाओं के कई रूप थे, जैसे मागधी, शौरसेनी, अर्धमागधी, और पैशाची
    • मागधी को भगवान महावीर और बुद्ध की भाषा कहा जाता है।
    • शौरसेनी का उपयोग जैन धर्म के ग्रंथों में व्यापक रूप से हुआ।
  3. महत्व:
    • प्राकृत भाषाओं का उपयोग धार्मिक ग्रंथों, नाटकों और काव्य में हुआ।
    • प्रसिद्ध संस्कृत नाटककार कालिदास ने भी अपने नाटकों में प्राकृत का उपयोग किया।

प्राचीन भाषाओं को सीखने के लाभ

  1. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक समझ:

    • पालि और प्राकृत जैसी भाषाएं भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को समझने में सहायक हैं।
    • ये भाषाएं बौद्ध और जैन धर्म के मूल ग्रंथों और दर्शन को पढ़ने और समझने का अवसर प्रदान करती हैं।
  2. भाषाई जड़ों का ज्ञान:

    • ये भाषाएं आधुनिक भारतीय भाषाओं की जड़ें समझने में मदद करती हैं, क्योंकि हिंदी, मराठी, बंगाली आदि पर इनका प्रभाव है।
  3. अध्यात्मिक लाभ:

    • बौद्ध और जैन ग्रंथों को मूल रूप में पढ़ने से गहन आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षा मिलती है।
  4. शोध और अध्ययन:

    • इन भाषाओं में दक्षता से पुरातात्विक और ऐतिहासिक अनुसंधान के क्षेत्र में योगदान किया जा सकता है।
  5. भाषा संरचना का अध्ययन:

    • प्राचीन भाषाएं व्याकरण और साहित्यिक संरचना के जटिल सिद्धांतों को समझने में मदद करती हैं।

इन भाषाओं पर शोध करने वाले प्रमुख विदेशी विद्वान

  1. हेर्मन ओल्डेनबर्ग (Hermann Oldenberg):

    • एक जर्मन विद्वान, जिन्होंने बौद्ध त्रिपिटक पर गहन अध्ययन किया।
  2. टी. डब्ल्यू. राइस डेविड्स (T.W. Rhys Davids):

    • पालि टेक्स्ट सोसाइटी (Pali Text Society) के संस्थापक और पालि साहित्य के एक प्रमुख विद्वान।
  3. एडवर्ड मिलर (Edward Muller):

    • प्राकृत भाषाओं और उनके व्याकरण पर शोध।
  4. जॉर्ज ग्रियर्सन (George Grierson):

    • भाषाई सर्वेक्षणों के माध्यम से प्राकृत और अन्य भाषाओं का गहन अध्ययन किया।
  5. जूल्स ब्लोच (Jules Bloch):

    • भारतीय भाषाओं के इतिहास पर शोध, विशेष रूप से प्राकृत पर।

निष्कर्ष

पालि और प्राकृत भाषाएं भारतीय सभ्यता और संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं। इन्हें सीखने से न केवल भारत के प्राचीन धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों की समझ विकसित होती है, बल्कि भारतीय भाषाओं की संरचना और उनके विकास को भी गहराई से समझा जा सकता है। इसके अलावा, इन पर शोध करना वैश्विक स्तर पर भारत की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने में मदद करता है।


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