Thinking Fast and Slow

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📘 किताब समीक्षा: Thinking, Fast and Slow

लेखक: डेनियल काह्नमैन
विधा: मनोविज्ञान, व्यवहारिक अर्थशास्त्र
प्रकाशन वर्ष: 2011
रेटिंग: ★★★★☆



क्या आप जानते हैं कि हमारा मस्तिष्क हर काम के लिए अलग मात्रा में ऊर्जा का उपयोग करता है? और यह कि हम किसी अनुभव को सीधे याद नहीं रख सकते? हमारे पास दो तरह की स्मृतियाँ होती हैं, जो किसी भी स्थिति को अलग-अलग तरीकों से याद रखती हैं।

नमस्कार,

आज हम बात कर रहे हैं नोबेल पुरस्कार विजेता Daniel Kahneman की विश्वप्रसिद्ध किताब "Thinking, Fast and Slow" की। यह किताब लेखक के 30 वर्षों के शोध का सार है और इसमें उन्होंने यह बताया है कि हमारे सोचने के दो सिस्टम होते हैं – System 1 और System 2।


🧠 भाग I: सोचने के दो सिस्टम – तेज और धीमा सोच

हमारा मस्तिष्क लगातार एक फिल्म की तरह काम करता है — इसमें ड्रामा भी है, इमोशन भी और एक्शन भी! इसके दो मुख्य किरदार हैं:

  • System 1 – यह तेज, स्वचालित और सहज होता है। बिना सोचे-समझे तुरंत प्रतिक्रिया करता है। जैसे – कोई तेज आवाज सुनना और तुरंत चौंक जाना।

  • System 2 – यह धीमा, तार्किक और गणनात्मक होता है। जब हमें किसी निर्णय में सोचने की ज़रूरत होती है, तब यह सक्रिय होता है।

उदाहरण के लिए:
"एक बल्ला और एक गेंद की कुल कीमत ₹110 है। बल्ला गेंद से ₹100 महँगा है। तो गेंद की कीमत क्या है?"

यदि आपका उत्तर ₹10 है, तो यह System 1 का प्रभाव है। परंतु सही उत्तर है ₹5 (क्योंकि बल्ला ₹105 का होगा)। यही अंतर दर्शाता है कि तेज सोचने वाला सिस्टम कितना सहज लेकिन त्रुटिपूर्ण हो सकता है।



💡 Priming: शब्द और सोच का जादू

अगर आप पहले “EAT” पढ़ते हैं और फिर “SO__P” देखें तो आप “SOUP” बनाएंगे। लेकिन अगर पहले “SHOWER” दिखे, तो “SOAP” बनेगा। इसे Priming कहते हैं – यानी एक शब्द हमारे सोचने का तरीका बदल सकता है।

यह सिर्फ सोच तक सीमित नहीं है, हमारी बॉडी लैंग्वेज पर भी असर डालता है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में जब छात्रों को बुजुर्गों से जुड़े शब्द बताए गए (जैसे Wrinkle, Bald), तो वे धीरे-धीरे चलने लगे!

इसलिए हमारा वातावरण, शब्द, और मीडिया हमारी सोच और निर्णयों को गहराई से प्रभावित करते हैं।


👼 Halo Effect – छवि से भ्रम

कभी किसी इंसान के एक गुण को देखकर उसके बाकी गुणों के बारे में अनुमान लगाया है? जैसे पार्टी में मिला "Ben" मज़ेदार था, इसलिए आपको लगता है वो चैरिटी के लिए भी अच्छा इंसान होगा। यह है Halo Effect – हमारी सोच का एक भ्रम, जो फैसलों को गलत दिशा में ले जा सकता है।


🧩 Heuristics और Biases – मानसिक शॉर्टकट

जब हम जल्दी निर्णय लेना चाहते हैं, तो मस्तिष्क Heuristics का इस्तेमाल करता है – यानि शॉर्टकट। लेकिन हर जगह यह शॉर्टकट काम नहीं करता।

उदाहरण:
लोगों से पूछा गया कि हार्ट डिजीज और एक्सीडेंट्स में कौन ज़्यादा मौतें करता है, तो 80% ने एक्सीडेंट्स कहा – जो गलत है। असल में हार्ट डिजीज से मरने की संभावना 100 गुना ज़्यादा है।
क्यों? क्योंकि मीडिया हमें रोज़ एक्सीडेंट की खबरें दिखाता है – जिससे हमारा सोचने का ढांचा ही बदल जाता है।


🎲 Taking Risks – जोखिम को कैसे देखते हैं

जब एक ही सूचना को अलग तरह से प्रस्तुत किया जाता है, तो हमारा निर्णय भी बदल जाता है।

उदाहरण:
दो ग्रुप को बताया गया –

  1. "मिस्टर जोन्स के हिंसक होने की संभावना 10% है"

  2. "ऐसे 100 में से 10 लोग हिंसक हो जाते हैं"
    दूसरे ग्रुप ने ज़्यादा संख्या में उन्हें अस्पताल से न निकालने की राय दी – जबकि दोनों बातें एक जैसी हैं।


🔋 Cognitive Ease बनाम Cognitive Strain

  • जब काम आसान लगे, ऊर्जा कम लगे – इसे कहते हैं Cognitive Ease (यहाँ हम जल्दी गलतियाँ करते हैं)

  • जब दिमाग ज़्यादा मेहनत करे – यह Cognitive Strain है (कम रचनात्मक लेकिन अधिक सटीक)

इसलिए आसान और सहज सोच में मज़ा आता है, लेकिन गंभीर निर्णयों के लिए System 2 ज़रूरी है।


🔮 भविष्यवाणी और बेस रेट

यदि किसी कंपनी के 80% टैक्सी लाल और 20% पीली हैं, तो अगली टैक्सी का रंग क्या होगा? हम अक्सर ताज़ा अनुभव के आधार पर अनुमान लगाते हैं, जबकि हमें Base Rate के आधार पर अनुमान लगाना चाहिए। लेकिन हमारा मस्तिष्क अक्सर बेस रेट को नजरअंदाज कर देता है।


💰 Choices – यूटिलिटी थ्योरी बनाम प्रॉस्पेक्ट थ्योरी

Utility Theory कहती है कि हम हमेशा तर्क से फैसले लेते हैं, लेकिन Prospect Theory बताती है कि हम भावनाओं से प्रभावित होकर निर्णय लेते हैं।

उदाहरण:

  • स्थिति A: ₹1000 मिले, फिर विकल्प – ₹500 निश्चित मिलें या ₹1000 जीतने का 50% मौका।

  • स्थिति B: ₹2000 मिले, फिर विकल्प – ₹500 निश्चित गँवाएँ या ₹1000 गँवाने का 50% रिस्क।

लोग पहली स्थिति में निश्चित राशि चुनते हैं, लेकिन दूसरी में रिस्क लेते हैं – जबकि दोनों स्थितियाँ गणनात्मक रूप से समान हैं!


🧠 हमारी दो स्मृतियाँ – Experiencing Self और Remembering Self

हम हर अनुभव को दो तरह से याद रखते हैं:

  • Experiencing Self – जो पल-पल की भावना को रिकॉर्ड करता है

  • Remembering Self – जो पूरे अनुभव को एक साथ याद करता है

हमारा फैसला अक्सर Remembering Self लेता है, इसलिए हम वही याद रखते हैं जो अंत में हुआ या जो सबसे भावनात्मक था।


🔔 सारांश 

  1. हमारे मस्तिष्क में दो सोचने की प्रणाली है – तेज और धीमा सोच।

  2. Priming, Halo Effect और Heuristics हमारी सोच को अनजाने में प्रभावित करते हैं।

  3. सोचने की प्रक्रिया ऊर्जा बचाने के सिद्धांत पर आधारित है।

  4. Prospect Theory बताती है कि हम तर्क नहीं, भावनाओं से प्रेरित होकर निर्णय लेते हैं।

  5. हम दो तरह से अनुभवों को याद रखते हैं – और अक्सर गलत तरीके से!


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